रिपोर्ट- मोहन दत्त भट्ट
देहरादून (परिपाटी न्यूज) उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के अन्तर्गत श्रीनगर में ग्राम देगोली (रॉतस्यू,) हैं जहाँ पर वातावरण तो शुद्व है ही परन्तु यह गाँव मुख्य मार्ग से लगा है। अर्थात यह माँ अलखनंदा नदी के निकट है। आपकों बताना चाहते हैं कि भी सही जीवन जिया जा सकता है, और हम आराम से रह सकते हैं अगर हमारे पास सन्तोष हो तो, पहाड़ में यूं तो आय के कम संसाधन है परन्तु जीवन एकदम मस्त है। ना किसी की हाय तौबा और ना ही किसी प्रकार की मारा-मारी। हम बात कर रहे हैं। सौभयावती देवी नेगी की! जिन्होने इसी सप्ताह 24. 09. 2024 को 102 साल की उम्र में रात्री 11ः00 बजे

अंतिम सांस ली। हमने जब 102 वर्ष को जाना तो उनके पुत्र गिरीश सिंह नेगी से बात की तो उन्होने जो बताया इस दौर (युग) में सभी अचम्भा सा लगा लेकिन सत्यता 101 प्रतिशत थी। वह क्या अचम्भा था आपको बताते हैं कि उनकी 102 वर्ष की उम्र जरुर थी परन्तु उनकी इस उम्र में कोई स्वास्थ्य में कमि नही थी। वह कभी भी दवा (औषधी) नहीं लेती थी। मतलब अपने छोटे मोटे नुख्से जो कि पहाड़ में प्रसिद्व है को कभी कभार ले लिया जब कोई छोटी मोटी पीड़ा हुई अन्यथा कभी नही। अन्त समय तक उनके पूरे 32 दांत थे। और तो और वह बिना चस्मे के पेपर पढ़ना ये उनकी जबरदस्त पहचान थी, उनके परिवार की बात करें तो

उनके पांच बेटे है, सबसे बड़े बेटे की आयु 80 वर्ष, दूसरे की 76 वर्ष, तीसरे की 74 वर्ष, चौथे की 70 वर्ष तथा पाँचवे और सबसे छोटे बेटे की आयु 61 वर्ष है। बड़े बेटे के दो नाते है। बहु और बेटा दादी मां की बहुत सेवा करते थे। ऐसा परिवार बहुत कम देखने को मिलता है जहाँ इतना प्रेम हो कि सभी एक दूसरे को प्रेम करते हैं। कुछ मेरठ में रहते हैं, तीसरा बेटा देहरादून में रहता है और इनकी एक बेटी है जो ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। इनके दो बेटे हैं, चौथा बेटा भी देहरादून में रहता है, इनके एक बेटा और एक बेटी हैं। उनके एक एक बेटे और बेटी है। पाँचवा बेटा भी रिटायरमेंट के बाद ऋषिकेश में ही रहता है इनके एक बेटा है। उनका पूरा परिवार कुषल है और अपने कार्यों में लगे हैं। हालाँकि माँ के जाने का गम तो बहुत है और जीवनभर रहेगा, परन्तु सम्पूर्ण परिवार को हंसता खेलता देखकर (छोड़कर) गयी हैं यह एक शुकून भी है। हम आपको सौभयावती देवी नेगी जी के बारे में यह बताना चाहते हैं कि लोग आज के आधुनिक दौर में पैसे को ज्यादा महत्तव दे रहे है जबकि भागदौड़ की इस आपा-धापी में कमाया पैसा अन्त में शरीर पर ही लग जाता है। अर्थात पैसा कमाने के चक्कर में शरीर का ध्यान नही दिया, और जब शरीर बेकार हुआ तो कमाया हुआ पैसा शरीर पर लगा दिया तो आखिर बचा क्या? जबकि पहाड़ के गाँव में आज भी देखा गया है कि शहर के मुताबिक वे लोग सुखी और निरोगे हैं। हम उन लोगों को बताना चाहते हैं जो पहाड़ को छोड़कर पलायन कर शहर में बनावट की जिन्दगी जीने का प्रयास कर रहे हैं, और अमूल्य धरोहर पहाड़ को छोड़ रहे हैं। हम तो कहते हैं कि सीखों सौभयावती देवी नेगी जी से, जिन्होने पहाड़ पर ही स्वस्थ जीवन जिया। आज भी पहाड़ पर कई बुजुर्ग होंगे जो 100 वर्ष की आयू पार कर रहे होंगे। परन्तु वह पहाड़ के गाँवों में ही पाये जा सकते है।