परिवर्तन करने की शक्ति ही सफलता का मार्ग है। सदा यह स्मृति कायम रखनी है कि मुझे अपने भीतर परिवर्तन करना ही है। जो स्वयं का परिवर्तन किसी बात में नहीं कर पाते हैं वे बाहरी परिस्थिति का परिवर्तन या विश्व के परिवर्तन की भी बात नहीं कर सकते हैं। इसलिये दूसरों में परिवर्तन लाने से पहले अपने आप में परिवर्तन लाना होगा। परिवर्तन लाने की शक्ति एक सेकेंड में अपनी स्मृति में परिवर्तन लाने के अभ्यास से होगा। अर्थात स्वयं को शरीर नहीं बल्कि आत्मा के स्वरूप में स्थित होकर देखें तो यह स्मृति एक सेकेंड में परिवर्तन ला सकती है।
अपने विचार, अपने संकल्प को एक सेकेंड में परिवर्तन कर लेने से अपने स्वभाव और संस्कार में भी परिवर्तन ला सकते हैं। अर्थात एक सेकेंड के संकल्प को सेकेंड में व्यर्थ संकल्प से समर्थ संकल्प में बदल सकते हैं। ऐसा करके हम अपने पुरूषार्थ की रफ्तार को एक सेकेंड में ही तीव्र करके साधारण से विशेष बना सकते हैं। इसे कहा जाता है परिवर्तन करने की शक्ति। हमें चेक करना है कि कहां तक सभी बातों के होते हुए भी इस शक्ति का विकास हुआ है। यदि सफलता के मार्ग में किसी प्रकार की बाधा और विघ्न पड़ती है उसका मुख्य कारण है परिवर्तन शक्ति की कमी का होना।
सर्व प्रकार की प्राप्ति का आधार है परिवर्तन करने की शक्ति। स्वयं का परिवर्तन न करने के कारण जितना ऊंचा लक्ष्य रखते हैं उस लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। परिवर्तन करने की शक्ति न होने के कारण हम चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते, साधन होते हुए भी उसका प्रयोग नहीं कर पाते हैं। यथा शक्ति नियमों पर चलते हुए भी अपने आप से संतुष्ट नहीं रहते हैं। परिवर्तन करने की शक्ति नहीं है तो हर प्राप्ति से वंचित रहेंगे और अपने को किनारे पर खड़ा हुआ अनुभव करेंगे। सब बातों में दूर होकर देखने-सुनने को मजबूर होंगे। दूसरे के सहयोग और शक्ति की प्राप्ति का अनुभव करने के लिये प्यासे रहेंगे।
अनेक प्रकार की स्वयं की प्रति इच्छाओं, आशाओं और कामनाओं का विस्तार तूफान के समान हमारे सामने आता रहता है। इस तूफान के कारण प्राप्ति की मंजिल सदा दूर नजर आती है। परिवर्तन शक्ति की कमी होने के कारण जो अनेक प्रकार की कामनाओं के तूफान दिखाई देते हैं उसमें हम चाहते हुए भी कुछ कर नहीं पाते। हम चाहते हैं कि यह होना चाहिए लेकिन कुछ कर नहीं पाते हैं। इसलिये इस तूफान से निकलने का साधन है अपनी परिवर्तन शक्ति को बढ़ाना, क्योंकि परिवर्तन शक्ति बढ़ाकर ही प्रत्यक्ष फल की प्राप्ति कर सकते हैं।
अव्यक्त महावाक्य बापदादा 13 सितम्बर 1975