दुनिया के खेल में हार-जीत का अंतर एक सेकेंड का है……

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विषय का अत्यधिक विस्तार उस विषय के के जरूरी है। सार में स्थित रहकर हम शक्तिशाली बने रहते है। जबकि विस्तार में कमजोर हो जाते है। सार में स्थित रहने के लिए समेटने की शक्ति का प्रयोग करना होगा। अपने को हर परिस्थिति से पार करने वाले शक्तिशाली स्थिति में स्थित रहने का अनुभव करना होगा। ऐसा करने वाले ही समस्या में सहजता से पार कर लंेगे। अभी तक साधारण परिस्थितियाॅ है। लेकिन यही परिस्थितियाॅ अचानक विकाराल रूप धारण करके विशेष आपदा बनकर हमारे उपर वार करेगी। अभी तक थोडे समय पहले ही आपदा की सूचना मिल जाती है। लेकिन प्रकृति का विकराल रूप एक दिन ऐसा होगा कि प्रकृति के सभी तत्व एक साथ और अचानक हम पर वार करेगंे। उस समय किसी भी प्रकार के साधन बचाव के लिए काम नही करेगें बल्कि साधन ही समस्या बनकर सामने आयेगंे। इससे बचने के लिए मास्टर महाकाल बना होगा। मास्टर महाकाल बनने की सहज विधि है अंहकार रहित, देहभिमान रहित अवस्था का बनना। जैसे प्रकृति के पाॅच विकराल रूप धारण कर लेते वेसे ही हमारे पाॅच विकार शक्तिशाली रूप धारण करके हम पर एक साथ वार कर देते है। अन्तिम समय माया और प्रकृति दोनो ही फुल फोर्स से दावॅ लगायेगे। जैसे युद्ध स्थल पर कमजोर व्यक्ति घबरा जाते है लेकिन हमे अपने को अपने में हिम्मत और उल्लास बनाकर रखना है।  किसी भी खेल में हार जीत का अन्तर एक सेकेंड का होता है। इस अन्तर का समाप्त करने के लिए विस्तार को  छोडकर सार में स्थित रहने और समेटने की शक्ति का होना अर्निवाय है।  अपने अंहकार के सकंल्प, और विकट परिस्थितियांे के संकल्प वाले हलचल को, इस भय  को, कि आगे क्या होगा, जड़ से समाप्त कर देना है। सभी प्रकार कि हलचल वाले संकल्प को समेट लेना है। इसके अतिरिक्त शरीर को आराम देने वाले वस्तुओ और अपनी आवश्यकताओ के साधनो कि प्राप्ति के सकंल्पो को भी समेट लेना है। एकाग्र, एक रस होकर एक के अन्त तक,एक सकंल्प पर स्थिर रहना है। एक सकंल्प पर स्थित रहने के लिए ज्ञान ओर योग का आधार लेना होगा और अशरीरपन का अनुभव करना होगा अर्थात हम जब चाहे शारीर का आधार ले अथवा न ले ।    हमे हर समय अपने को तैयार रखना होगा। ऐसा नही सोचना है कि हमे समय तैयार कर देगा। समय को शिक्षक न बनने दे क्योकि समय दंड पहले देता है और शिक्षा बाद में देता है। इसलिए यह ना सोचे कि समय हमे तैयार कर ही देगा या समय पर यह कार्य हो ही जायेगा। 

अव्यक्त  बाप-दादा महावाक्प मुरली 14-9-75

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