पर्यावरण पर संतुलन बनाना सीखना होगा अन्यथा पृथ्वी पर मानव जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा: प्रोफेसर जे. पी. पचौरी

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हरिद्वार परिपाटी न्यूज़/ जिला क्राइम रिपोर्टर (परमिंदर नारायण)

लंढौरा। विकास की अंधी दौड़ में हमने पर्यावरण संतुलन को इस कदर बिगाड़ दिया है कि स्थिति हमारे हाथ से निकलती जा रही है। जलवायु परिवर्तन से लेकर जल संकट जैसी समस्याएं मानव के स्वार्थ और विकास की अंधी दौड़ का नतीजा है। यदि हमने समय रहते और कदम न उठाए तो पृथ्वी पर मानव जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा । उक्त उद्गार हिमालय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो जे पी पचौरी ने चमन लाल महाविद्यालय में जंतु विज्ञान और माइक्रोबायोलॉजी विज्ञान विभाग द्वारा ‘क्लाइमेट चेंज एंड वाटर सिक्योरिटी : चैलेंजिज फॉर अडॉप्टिव वाटर मैनेजमेंट’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में बोलते हुए कहीं । प्रो पचोरी ने कहा की हमें विकास और पर्यावरण में संतुलन बनाना सीखना होगा और अपनी आवश्यकताएं सीमित करनी होगी तभी हम मानव जनित पर्यावरण संबंधी समस्याओं से छुटकारा पा सकेंगे । विशेष वक्ता डॉ अशोक पाणिग्रही ने पर्यावरण संरक्षण में बायोडायवर्सिटी के महत्त्व की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि जैव विविधता पर्यावरण संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जल प्रदूषण वायु प्रदूषण और मृदा प्रदूषण से निपटने के लिए हमें इसके कारणों की जड़ पर प्रहार करना होगा। उन्होंने बढ़ते औद्योगिकीकरण को पर्यावरण प्रदूषण के लिए बड़ा कारण बताते हुए कहा कि औद्योगिक इकाइयों पर पर्यावरण प्रदूषण संबंधी प्रावधान कड़ाई से लागू करने होंगे। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के डॉ माहेश्वरी ने कहा कि विकास के नाम पर हम पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व संकट में डालते जा रहे हैं। बढ़ते कंक्रीट के जंगल, बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या कोमा वनों का अंधाधुंध कटान जलवायु परिवर्तन के महत्वपूर्ण कारण है। जल संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए हमें इन चीजों पर रोक लगानी होगी। डॉ अवनीश चौहान ने जल संरक्षण की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि हम बहुत तेजी से भूगर्भ जल को खत्म करते जा रहे हैं जो हमारी आने वाली संस्कृति के लिए बेहद खतरनाक साबित होगा। हमें रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के उपायों पर गंभीरता से काम करना होगा। प्राचार्य डॉ सुशील उपाध्याय ने जलवायु परिवर्तन और जल संरक्षण दो ऐसे विषय हैं जिन पर पूरे विश्व में चिंता व्यक्त की जा रही है। भारतवर्ष की परंपराओं में प्रकृति को माता कहा गया है और नदियों को देवियों के समान स्थान प्रदान करके सम्मान प्रदान किया गया है लेकिन भौतिकवाद की इस चकाचौंध में हम अपनी परंपराओं से विमुख हो गए जिस कारण हमने पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ दिया। जल के अंधाधुंध दोहन के कारण पेयजल की समस्याओं से हमें दो चार होना पड़ रहा है। नदियां प्रदूषित हैं। समय रहते यदि हमने इन चुनौतियों का सामना नहीं किया तो भविष्य में हम अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे होंगे। हमें अपने आपको दोबारा अपनी परंपराओं से जोड़ना होगा अपने बुजुर्गों से सीख ले कर प्रकृति और नदियों को उनका वास्तविक स्थान लौट आना होगा तभी हम इन चुनौतियों से पार पा सकेंगे। संगोष्ठी की समन्वयक डॉ दीपिका सनी में वक्ताओं और अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। आयोजन सचिव डॉ प्रभात कुमार रहे। मंच संचालन डॉक्टर नवीन त्यागी ने किया। इस अवसर पर देश भर से आए शोधार्थियों अपने शोध पत्रों का वाचन किया।