यह एक ऐसा सत्य है कि भारत देश वासियों को क्या सारी श्रृष्टि को यह पसंद तो आएगी लेकिन इस बात पर किसी को भी कोई ध्यान नहीं है।जब कि श्रृष्टि के हर इन्सान व ज्ञान वान तथा ध्यान वान हर मनुष्य रुप प्राणी मानते हैं। और जानते हैं ।कि हमें एक दिन मृत्यु अवश्य ही आयेगी परन्तु इस बात को स्वीकार नहीं करते और स्वीकार तो सब करते हैं। लेकिन उस पर उस तरह से अग्रसर नहीं है ।हर इन्सान अपने को लेकर खुश नहीं है। हमेशा यही कोशिश करते हुए मनुष्य मृत्यु के मुंह का ग्रास बन जाता है। भगवन पता हि नहीं चल पाता प्रहलाद के पिता हिरण्याक्ष ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई बार और कई तरीकों से मारना और मरवाना चाहा। परंतु किसी भी तरह से वह उसको मरवा नहीं पाया आखिर में हिरण्याक्ष की मृत्यु हुई और प्रहलाद बच गए यह पौराणिक समय की बात है। जो भी लोग यह बात जानते हैं। और जिनको भोजन के स्वाद का पता है। वह दुनिया की हर बात को जानते हैं ।परंतु फिर भी मनवान्छित फल पाने के लिए मनुष्य अच्छे बुरे किसी भी कर्म को करने के लिए तत्पर है। जबकि सारी सृष्टि इस बात को स्वीकार करती है ।की होगा वही जो राम रच राखा करहु सु तर्क बढावहि शाखा अर्थात तर्क करने से मनुष्य मूल से हट जाता है। और पत्तों पर विचरण करने लगता है ।
फिर जीवन में उसके हाथ मूल नहीं लग पाता और वह एक दिन भटकते हुए मृत्यु के मुंह में निवास करने पहुंच जाता है। यही नियति है प्रभु की इच्छा के बिना कुछ होने वाला नहीं है। पत्ता तक हिलता नहीं हे प्रभु मंगल मूल और तेरी सत्ता के बिना खिले न कोई फूल इसी को नियति कहते हैं अर्थात नीति बचनानी यह जो वचन है यह जो शब्द है ।यह जो कहानी है ।यह नियति की कहानी है जिस प्रकार आज मुझे कुछ और बोलते हैं। लोग और दिल में कुछ और रखते हैं ।किसी को रास्ता बता देने में भी लोग कतराते हैं ।और कुछ लोग जो रास्ता भी गलत बता देते हैं ।जबकि उनका उससे कोई उद्देश्य भी नहीं है ।कोई लाभ भी नहीं है ।कोई हानि भी नहीं है। परंतु फिर भी सही रास्ता बता देना नहीं चाहते और कुछ लोग सही रास्ते पर चलना ही नहीं चाहते जिन्हें सही रास्ते का मालूम है। जानकारी है ।ज्ञान है। फिर भी वे गलत रास्ते पर ही चलते रहते हैं किसी के मना करने पर भी नहीं मानते और नियति के विपरीत चलते रहते हैं। इसीलिए नियति के विपरीत चलने पर लोगों को कष्ट भी होता है ।फिर भी लोग ग़लत नियति पर ही चलते रहते हैं। क्योंकि वे केवल स्वार्थ के वसीभूत है ।स्वार्थ में लिप्त है ।चाहे उसमें उन्हें बेज्जती हो या कोई और हानि हो परंतु वह नियति पर नहीं चलते हमेशा नियति के विपरीत चलने की चेष्टा करते रहते हैं ।जो नियति पर चलते हैं। वह थोड़ा देर तो लगती है ।समय तो लगता है। लेकिन लाभ प्रद होता है ।इसीलिए हमारा बोलना है। कहना है। लिखना है ।हम सबके लिए नियति पर चले नियति से ना बचे यही एक अच्छे मनुष्य का कर्तव्य है।
इस कहानी के लेखक डॉक्टर मुनेश चंद्र शर्मा है।