(मुनेश चन्द शर्मा द्वारा लिखित)
दोस्तों आप को सुनाता हूं। बुढ़ापे कि बात। एक भगवन् नामक व्यक्ति थे ।जो बहुत गरीब व्यक्ति थे। जिन्होंने अपनी शादी के बाद जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतनी मेहनत करने लगे। कि कुछ समय में ही उनका कार्यकाल अच्छे से व्यतीत होने लगा। परन्तु उनके कोई संतान नहीं हुई ।जिसके कारण वह इधर-उधर मंदिरों में मठों में ईश्वर से मन्नत मांगते हुए गुहार लगाते हुए प्रार्थना करने लगे। और एक दिन ईश्वर ने उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। उनकी पत्नी को लड़के के रूप में एक संतान की उत्पत्ति हुई ।वह संतान को प्राप्त कर के दोनों पति-पत्नी बहुत प्रफुल्लित हुए ।और उन्होंने अपने कार्य में अत्यधिक मन लगाकर अपने कार्य को बढ़ाया। अत्यधिक मेहनत के फल स्वरुप उनको कमाई भी काफी होने लगी ।और उनके दिन खुशी के साथ व्यतीत होने लगे। धीरे-धीरे समय बढ़ता गया। बच्चा जवान होने लगा पढ़ा लिखा कर उसकी शादी कर दी गई ।कुछ दिनों बाद उनकी बहु को एक पुत्र प्राप्ति हुई। जिससे उनका घर खुशियों से झूम उठा। इसी तरह समय बड़ा आनंदित होकर के व्यतीत होने लगा। अब उनका पोता कुछ बड़ा हुआ तब उसको। पढ़ने के लिए विदेश भेज दिया गया। परंतु पोते के विदेश जाने से पहले ही उसकी दादी का स्वर्गवास हो गया। जिसके कारण उनका पोता बहुत दुखी हुआ ।और उसने दादाजी को दुखी देखकर उनसे कहा ।दादा जी आप चिंता ना करना। मैं विदेश से लौटकर बहुत जल्दी आकर के आपका ध्यान रखूंगा। तब तक मम्मी पापा आपका पूरा ध्यान रखेंगे ।इसी बीच हरि नारायण उनका लड़का एक दिन उनसे कहने लगा ।पापा जी अब आपको कुछ करने की आवश्यकता नहीं है ।आप घर में आराम करें भगवन बहुत खुश हुए और वह घर पर जाकर आराम करने लगे परंतु चार-पांच महीने बीतने पर उनकी पुत्रवधू ने उनके साथ दुर्व्यवहार करना आरंभ कर दिया। कभी कपड़े धुलवाती कभी पौछा लगवाती कभी बर्तन साफ कराती और कभी-कभी तो उन्हें खाने के लिए भी नहीं पूछती थी। 4–5 साल इसी तरह से गुजर गए और भगवन कमजोर होते चले गए एक दिन उनके पुत्र वधू की और पुत्र की बहार दावत थी। वह दोनों दावत के लिए जाने लगे। बहू ने अपने ससुर से कहा। फ्रिज में रोटी रखी है ।खा लेना। और वह दोनों इतना कह करके चले गए ।जब भगवन को भूख लगी तब उन्होंने फ्रिज खोल करके देखा तो उसमें दो रोटी रखी थी। उनमें बदबू आ रही थी क्योंकि वह रोटी बासी थी ।उन्होंने वह नहीं खाई ।रात को जब बहु बेटा वापस घर पर आए ।उन्होंने अपने ससुर से यह नहीं पूछा कि आपने कुछ खाना खाया। या कि नहीं। खाया ।भूख से उनकी आत्मा परेशान थी ।परंतु वह कुछ बोल नहीं पा रहे थे ।सुबह हुई रात भर उनको नींद नहीं आई थी ।सुबह को बहू आई और एक कप चाय देखकर के कहने लगी घर का सारा काम पड़ा है मेहमान आ रहे हैं ।जल्दी से चाय पीकर यह कपड़े साफ कर दो इन्हें सूखने डाल दो ऊपर तथा पौछा लगाकर अपनी चारपाई आंगन से उठा करके बाहर वाले कमरे में डालकर बैठ जाओ और तब तक नहीं आना जब तक मेहमान आकर न चले जाए ।बहू ने कहा मेरे मेंके वाले आ रहे हैं। उनके सामने आपको आने की आवश्यकता नहीं है ।जब वह चले जाएंगे तब कुछ खाने में बचेगा तो मैं आपको लाकर के दे दूंगी आप खा लेना और नहीं बचा तब 1 दिन में कोई बड़ी बात नहीं है कल तो खाना बनेगा ही ।भगवन जी बहुत परेशान थे ।करे तो क्या करें जब समय मिलता एकान्त में बैठ करके अपनी पत्नी को याद करके रोते रहते थे ।क्योंकि जब तक उनकी पत्नी रही ।तब तक वह घर के मालिक थे ।बड़े खुशहाल थे ।लेकिन जब से वह गुजर गई तब से आज तक उनकी यह दुर्दशा हो गई है। ना उनके पास दो पैसे रहते हैं ना सही से कपड़ा मिलता है ना समय-समय पर खाना मिलता है ।कहीं आने जाने का भी उन पर प्रतिबंध लगा है। लेकिन अचानक एक दिन उन्होंने देखा कि कुछ करना चाहिए। तब उन्होंने कुछ चीजों के पैकेट लेकर के वह हवाई अड्डे पर बेचने लगे। एक दिन अचानक उनका पोता भी अपने दोस्त के साथ वापस पढ़ाई पूरी करके अपने शहर लौटा ।जैसे ही उस बूढ़े के पास सामने पहुंचा उसने देखा। कि ये तो मेरे दादाजी है ।लेकिन दादाजी ने अपने पोते को नहीं देखा। और वह कह रहे थे की बेटा यह पैकेट ₹10 का है अच्छा स्वादिष्ट पैकेट है ।यह आप ले ले तब उसने लड़के की ओर देखा। और लड़के ने अपने दादाजी से कहा। दादा जी यह आप क्या कर रहे हैं ।तब दादा जी की आंखों से आंसू आ गए और रोने लगे। कहने लगे ।बेटा बस यह बेच करके अपना समय बिता रहा हूं ।और उसने अपनी सारी कहानी बताई ।तब पोते ने उन्हें एक होटल में ले जाकर के ।अच्छा सा खाना खिलाया ।और उनको वहां पर एक कमरा बुक कर दिया। और कहा कि। दादाजी आप यही रहे। मैं आ गया हूं।अब आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है ।और मैं आपकी देखरेख करूंगा। उसके बाद पोता घर गया। उसकी मम्मी ने देखा। गले से लगा लिया। अपने पति को बुलाया बोली देखो हमारा बेटा आ गया है। तब दोनों ने उसको गले से लगाया। उसकी खैर कुशल पूछी। तब पोते ने पूछा। हमारे दादाजी कहां है ।वह हमारे पास नहीं आए ।तब उसकी मम्मी ने कहा ।बेटा तुम्हारे दादा तो ऐसे ही भटकते फिरते हैं ।कभी-कही चले जाते हैं ।कभी-कही चले जाते हैं। घूमते फिरते रहते हैं ।उन्हें किसी की कोई चिंता नहीं है। पिताजी ने कहा बेटा उनके एक दोस्त है। यहां कभी-कभी वह अपने दोस्त के यहां चले जाते हैं ।एक-एक दो-दो दिन वहां पर भी रुक जाते हैं ।फिर सुबह हुई पोता अपने दादाजी के पास पहुंचा और उनको दूसरे कपड़े दिलाकर नैहलाया धुलाया ।और खाना खिलाया ।फिर उनको लेकर के अपनी मम्मी पापा के पास गया। तब उसकी मम्मी ने कहा बेटा यह कहां मिले आपको ।तब उनके बेटे ने कहा ।कि जहां तुमने इन्हें धक्के खाने के लिए भेजा है ।यह बेचारे चिप्स बेच करके अपना गुजारा करते हैं ।मुझे आपको मां-बाप कहने में भी शर्म आती है। दादाजी ने मेरे लिए क्या कुछ नहीं किया ।आपके लिए क्या कुछ नहीं किया ।परंतु आप लोगों ने इस बुढ़ापे में इन्हें धक्के खाने के लिए छोड दिया ।फिर आपको उनकी औलाद कहलाने का भी अधिकार नहीं है।एसा होता है बेचारा बेदर्द बुढ़ापा।
लेखक- मुनेश चन्द शर्मा