विपरीत परिस्थिति में सिर पर अनेक प्रकार के विघ्नों का बोझ होगा, ताज नही होगा। सदैव किसी न किसी प्रकार का बोझ उनके बुद्धि में अवश्य महसूस होगा। ऐसे व्यक्ति कर्जदार और मर्जदार होंगे। उनके मस्तक पर, मुख पर सदैव क्वेश्चन मार्क होगा। हर बात में क्यों, क्या और कैसे यह क्वेश्चन होगा। फुलस्टाॅप नही लगा सकने के कारण एक सेकेण्ड में बुद्धि को एकाग्र नही कर सकंेगे। फुलस्टाॅप की निशानी बिन्दी है अर्थात ये बिन्दु स्वरूप में स्थित नही होंगे।
ऐस व्यक्ति हर संकल्प में सदा स्वंय से क्वेश्चन करती रहेगी कि क्या मै सफलता प्राप्त करूॅगा, सर्व को सतुष्ट कर सकूॅगा। अनेक प्रकार की क्वेश्चन स्वयं के प्रति भी होंगे और दूसरों के प्रति भी होंगे। यह मेंरे से ऐसा क्यो बोलते है, मुझे विशेष सहायोग क्यो नही मिलता है, मेरा नाम और मेरा मान क्यो नही होता है।
ऐसे व्यक्ति सर्व शक्तिमान परमात्मा से भी क्वेश्चन करते है। जब वह सर्व शक्तिमान है तब मेरी बुद्धि क्यो नही पलटाते। नजर से निहाल करने वाले मेरी तरफ नजर क्यो नही रखते है। मै जैसा भी हॅॅू, कैसा भी हॅू, उनका ही हूॅ इसलिए उनकी जिम्मेदारी है मुझे पार कराना। जब दाता है तब मै जो चाहता हॅू वह क्यो नही देते है। त्रिकालदर्शी है, मेरे तीनों कालों को जानते है तो मुझे स्वंय ही अपनी शक्ति से श्रेष्ठ पद क्यो नही दिलाते है।
एक तरफ इस जन्म की कर्मो का बोझ, दूसरी तरफ परमात्मा द्वारा प्राप्त सर्व अधिकार के रिटर्न करने का फल पालन न कर सकने के कारण फर्ज के बजाय कर्ज बन जाता है। कर्ज का बोझ व्यक्ति के सर्व कमजोरियों के मर्ज का रूप ले लेता है।
इसलिए उनके बार-बार यही आवाज निकालती है कि अनुभव नही होता है। सुनते भी रहते है, चलते भी रहते है लेकिन प्राप्ति की मंजिल नजर नही आती है। इतने पर भी रहम दिल परमात्मा सम्बन्ध के कारण बार बार हिम्मत और उल्लास दिलाते रहते है। इनके अनुसार हिम्मत आपकी मदद हमारी। चलते रहों रूको नही।
सिर्फ एक सेकेण्ड भी सच्चे दिल से याद करों तब एक सेकेण्ड में मिलने वाली अनुभूति और प्राप्ति सारे दिन में बार बार सब तरफ से दूर कर एक तरफ आकर्षित करती रहती है। ऐसे छत्रधारी स्वयं को और सभी को निर्बल से महा बलवान बनाने वाले और सर्व कमजोरियों को एक सेकेण्ड में समाप्त करने वाले बन जाते है।
निर्मल को महा बलवान बनाने वाले और दुनिया के चक्करों से मुक्त रहने वाले बनना है। इसके लिए स्वदर्शन पर बल देना है। स्वदर्शन चक्रधारी ही छत्रधारी अर्थात राजा बनता है। वर्तमान का चक्रधारी भविष्य का छत्रधारी है। चक्रधारी नही है तो छत्रधारी भी नही बन सकता है। चक्रधारी बनने वाले ही सदा माया अधिकारी होंगे। माया इनके अधीन होगें। ऐसा चक्रधारी सदैव माया के अनेक प्रकार के चक्रों से मुक्त होगा और अपने पूराने स्वभाव और संस्कारों से भी मुक्त होगा।
अव्यक्त बापदादा महावक्य मुरली 18 सितम्बर 1975