नजीबाबाद/जलालाबाद। सर्द मौसम आते ही गर्म कपड़ों, कंबल और लिहाफ की जरूरत होती है। एक जमाना था जब नजीबाबाद और जलालाबाद में बने कंबलों की बेहद मांग होती थी। कारीगरों के हाथ और कंबल कारखाना से मांग पूरी की जाती थी। सरकारी प्रोत्साहन न मिलने के कारण कंबल बनाने वाले लोग अन्य कारोबारों से जुड़ गए हैं। कंबल बनाने वालों के मोहल्ले को आज भी कंबलियों का मोहल्ला कहा जाता है।
नवाब नजीबुद्दौला का बसाया नजीबाबाद कलात्मक नवाबी इमारतों के साथ लघु उद्योगों के लिए अपनी पहचान रखता है। लघु हथकरघा उद्योग में नजीबाबाद की कंबल निर्माण कला दूर-दूर तक मशहूर रही। नगर के कंबल कारखाना में निर्मित कंबलों से ज्यादा गर्म कंबल में धनगर समाज द्वारा निर्मित कंबल गुणवत्ता की दृष्टि से खरीदारों की पहली मांग बना करते थे। करीब ढाई दशक से बंद नजीबाबाद के कंबल कारखाने का मुख्यमंत्री द्वारा जीर्णोद्धार कराया जा चुका है।
एक वर्ष से नजीबाबाद का कंबल कारखाना कंबल निर्माण कर रहा है, लेकिन धनगर समाज जिसे पाल समाज के नाम से जाना जाता है। हाथ से बने कंबल निर्माण कला पूरी तरह छोड़ चुका है। एक जमाना था मोहल्ला मकबरा स्थित गीता भवन मंदिर क्षेत्र में दिन निकलते ही कंबल कारीगर घर के बाहर सड़क पर कंबल बनाने के कार्य में व्यस्त हो जाते थे। कंबल बनाने के लिए सड़क पर ही खड्डी लगती थीं। कंबलों के पल्ले की कूच यानी विशेष प्रकार के ब्रश से सफाई की जाती थी।
धनगर समाज के करीब दो दर्जन से अधिक परिवार कंबल निर्माण कला से जुड़े थे। धनगर समाज के अध्यक्ष योगेश पाल, कंबल कारीगर स्व. गेंदा सिंह के पुत्र खेमपाल सिंह और कंबल कारीगर स्व. धर्मवीर सिंह के पुत्र तेजपाल सिंह बताते हैं कि करीब चार दशक पूर्व मोहल्ला मकबरा के धनगर समाज ने सरकारी प्रोत्साहन न मिलने और अनेक चुनौतियों के चलते कंबल निर्माण कार्य बंद कर दिया। धनगर समाज आज अन्य कारोबार से जुड़ चुका है।
कंबल निर्माण करने वाले प्रमुख कारीगर
नजीबाबाद। जाने-माने कंबल कारीगरों में मुरली सिंह, फकीर चंद, धर्मवीर सिंह, गेंदा सिंह, गोवर्धन सिंह, नथवा सिंह, लोहार सिंह, उमानंद, गिरधारी सिंह प्रमुख कारीगर माने जाते थे। अधिकांश का कंबल कारीगरों की मृत्यु हो चुकी है। घर में लगी कंबल निर्माण खड्डी और मशीनें भी इतिहास बन चुकी हैं। कंबल बनने में भेड़ की ऊन इस्तेमाल की जाती थी। धनगर समाज के खेमपाल सिंह बताते हैं कि तहसील के गांव रामदासवाली, प्रीतमगढ़, राजगढ़ सहित कई गांव में भेड़ पालन होता था। नगर पंचायत जलालाबाद में पर्वतीय ऊन उत्पादन केंद्र मोहल्ला प्रेम नगर में लोई, पंखी और कंबल निर्माण से जुड़ा रहा। निसार अहमद, मो. इकबाल के किराए के मकान में कारीगर अब्दुल समद, पतराम के बनाए कंबल बिजनौर, सहारनपुर, हरिद्वार, देहरादून में बिक्री के लिए जाया करते थे। 9 नवंबर 2000 में उत्तराखंड स्थापना के बाद पर्वतीय ऊन उत्पादन केंद्र जलालाबाद से बंद कर दिया गया।
रिपोर्ट- दीपक भार्गव