मंडल ब्यूरो-जोगेंद्र तोमर/परिपाटी न्यूज मीडिया
पीलीभीत(परिपाटी न्यूज)जंगल के बीचोबीच एक ऐसा मंदिर भी है ,जहाँ मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालुओं द्वारा चापाकल लगाया जाता है। मंदिर के आसपास सैकड़ों की संख्या मे चापाकल लगाये गये हैं। हालांकि इसमे से अनेक चापाकल उखाड़ कर स्मैकियों और गंजेड़ियों द्वारा बेच भी लिया गया है। रानीखेत के झूला देवी मंदिर मे जिस तरह मन्नत पूरी करने के लिए लोग घंटियाँ बांधते हैं, अन्य कई मंदिरों मे लाल धागा बांधते हैं ,यहाँ भी घंटियाँ देखी जा सकती है। ये अलग बात है कि कुछ लोगों ने कुछ न मिलने पर पालीथीन ही लपेटकर बांध दिया है।
भावना भले ही अच्छी हो पर यह पर्यावरण के लिए सही नही है। यह मंदिर अत्यंत दुर्गम जगह पर जंगल के मध्य है जहाँ जाने के लिए घने झाडियों के बीच से गढ्ढों से भरे कच्चे रास्ते से जाना पड़ता है। एक तरफ गोमती नदी और दूसरीतरफ घने जंगल। हम बात कर रहे हैं पूरनपुर तहसील के बलरामपुर चौकी क्षेत्र के मंडनपुर सिरसा जंगल के अन्दर गोमती नदी के किनारे स्थित भगवान शंकर के पवित्र शिवालय बाबा इकोत्तर नाथ मंदिर की। कहा जाता है करीब एक सदी पहले जंगल में इसी स्थान पर कुछ चरवाहों ने छोटे-बड़े 71 शिवलिंग देखे। इनमें एक शिवलिंग काफी बड़ा था। बाद में बड़े शिवलिंग वाले स्थान पर ही मंदिर
का निर्माण करा दिया गया। इन पाये गये इकहत्तर शिवलिंगों के कारण इसे इकहत्तर नाथ कहा गया जो बाद मे अपभ्रंश होकर इकोत्तरनाथ हो गया।तहसील मुख्यालय से करीब पंद्रह किमी दूर स्थित इकोत्तर नाथ मंदिर स्थल का वातावरण बड़ा ही मनोरम है। एक ओर जंगल में हरे भरे वृक्ष तथा दूसरी ओर बहती गोमती नदी। कहा जाता है कि मंदिर का शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है ।सुबह से शाम तक सूर्य की विभिन्न स्थितियों के आधार पर शिवलिंग का रंग परिवर्तित होता रहता है। तमाम भक्त इसे भगवान शिव का चमत्कार मानते है। ऋषि पत्नी अहिल्या से देवराज इंद्र द्वारा किए गए छल की कथा सर्वविदित है जिसमे गौतम ऋषि के क्रोध ने अहिल्या को पत्थर और इंद्र को भग-वान बना दिया। पूरे शरीर मे बने भग से मुक्ति हेतु उनके द्वारा इन इकहत्तर शिवलिंगों को स्थापना कर उसकी पूजा की गई, तब वो शाप मुक्त हो पाये। मान्यता है कि आज भी हर रोज इंद्रदेव इस मंदिर में स्वयं पूजा करने आते हैं। मंदिर में ताला लगाकर बाहर लोग सोते रहते हैं और अंदर मंदिर में पूजा हो जाती है। कहते हैं कोई आजतक यहाँ पहली पूजा नही कर पाया। पलक झपकते ही पहली पूजा अपने आप कोई कर जाता है।यहां पुष्प कौन चढ़ा जाता है कि इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता है। कुछ भक्तों ने इसको जानने के लिए मंदिर परिसर मे रातें बिताई लेकिन आश्चर्य को नहीं जान सके।है।इसी तरह मंदिर के पास के एक स्थान पर चिलम पीने का आवाहन करने पर धुंआ निकलने का चमत्कार लोगों को दिन में भी नजर आता है। यहाँ प्रत्येक अमावस्या, सावन माह की सोमवार और महाशिवरात्रि को मेला लगता है। वैसे किसी भी दिन भक्तों की भीड़ लगी होती है। जंगल और दुर्गम रास्तों के कारण शाम के बाद कोई यहाँ जाता नही। यही हाल माला जंगल स्थित सिद्ध बाबा मंदिर का है। वन विभाग के सहयोग से इकोत्तरनाथ मंदिर और सिद्ध बाबा मंदिर को एक अच्छे धार्मिक पर्यटन स्थल के रुप मे विकसित किया जा सकता है। आसपास पिकनिक स्पॉट का एक अच्छा लोकेशन है परंतु जंगली जानवरों का भी यहां आना हो सकता है इसलिए उसके दृष्टिगत बाड़बंदी या फेंसिंग जरूरी है। रास्ता पक्का बन जानेपर यात्रा सुगम हो जाएगा। अभी यहाँ पीलीभीत के श्रद्धालु पूरनपुर की ओर से, लखीमपुर खीरी और शाहजहांपुर के श्रद्धालु बंडा रोड ,गोपालपुर की तरफ से आते हैं। पीलीभीत मे इस तरह के अनेक मंदिर हैं जिसके बारे मे पीलीभीत मे भी बहुत लोगों को नही पता है। बाराही रेंज मे वाराही देवी मंदिर भी इसी तरह का है जिसके बारे मे लोगों को जानना चाहिए।