अंजनी देवी मंदिर नील पर्वत पर किया वृक्षारोपड़ समारोह आयोजित

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रिपोर्ट- सूरज कुमार

हरिद्वार (परिपाटी न्यूज)। नील पर्वत पर विराजमान चन्डी देवी मंदिर के निकट माता अंजनी देवी मंदिर ट्रस्ट के माध्यम से वृक्षा रोपण का कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें अखाड़ा परिशद के पूर्व प्रवक्ता बाबा हठयोगी जी महाराज की अध्यक्षता एवं श्रीमाता अंजनी देवी मंदिर चैरिटेवल ट्रस्ट के अध्यक्ष महन्त सतीष गिरी जी महाराज ने संचालन में सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत माता मंदिर के श्रीमहन्त महामण्डलेष्वर स्वामी ललितानन्द गिरी जी महाराज रहे। नील पर्वत पर ट्रस्ट के माघ्यम से 250 छायादार व फलदार वृक्षों को लगाया गया जो कि पर्वत की तो षोभा बढ़ायेगे ही साथ ही आने वाले श्रद्वालुओं को भी

पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करेंगे। श्रीमाता अंजनी देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष महन्त सतीष गिरी ने कहा कि वृक्ष हमारे जीवन का आधार है और वृक्ष प्रकृति की एक अनमोल देन है और यही वजह है कि भारत में वृक्षों को प्राचीन काल से ही पूजा जाता रहा है। आज भी यह प्रथा कायम है। वृक्ष हमारे परम हितैसी निःस्वार्थ सहायक अभिन्न मित्र हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में वृक्षों का अत्यधिक महत्व है। वृक्षों के बिना अधिकांश जीवों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वृक्षों से ढके पहाड़, फल और फूलों से लदे वृक्ष, बाग, बगीचे मनोहारी दृश्य उपस्थित करते हैं और मन को शांति प्रदान करते हैं। वृक्षों से अनेकों लाभ हैं जैसे वृक्ष अपनी भोजन प्रक्रिया के दौरान वातावरण से कार्बन डाइ ऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं जिससे अनेक जीवों का जीवन संभव हो पाता है। हम प्रत्येक वर्श हरेला पर्व के अवसर पर वृक्षों का रोपण कराते रहते हैं, मंदिर प्रंागण के आसपास हर वर्श हम नये पौधे लगाते रहते हैं। हम सभी देषवासियोें से भी यही अनुरोध करते हैं कि हर वर्श कम से कम 2 वृक्ष अवष्य लगाये ताकि पर्यावरण का सन्तुलन बना रहे। और हमारा प्थ्वी भी हरी भरी रहे।

भारत माता मंदिर के महन्त महामण्डलेष्वर स्वामी ललितानन्द गिरी जी महाराज ने कहा कि वृक्षों से हमें लकड़ी, घास, गोंद, रेजिन, रबर, फाइबर, सिल्क, टैनिन, लैटेक्स, हड्डी, बांस, केन, कत्था, सुपारी, तेल, रंग, फल, फूल, बीज तथा औषधियाँ प्राप्त होती हैं। वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करने का कार्य करते हैं और प्रदूषण को दूर करते हैं। ध्वनि प्रदूषण को दूर करते हैं। वायु अवरोधक की तरह काम करते हैं और इस तरह आँधी तूफान से होने वाली क्षति को कम करते हैं। वृक्ष की जड़ मिट्टी को मजबूती से पकड़ कर रखती है जिससे भूमि कटान रुकता है। वृक्ष सूर्य के ताप से जीवों को बचाते हैं। अनेकों जीव इसकी गोद में शरण पाते हैं और इसके फल, फूल, जड़, तना तथा पत्तों से अपना पोषण करते हैं। इस बात को यूँ भी समझ सकते हैं-वृक्ष प्रकृति की एक अनमोल देन है और यही वजह है कि भारत में वृक्षों को प्राचीन काल से ही पूजा जाता रहा है। आज भी यह प्रथा कायम है। वृक्ष हमारे परम हितैसी निःस्वार्थ सहायक अभिन्न मित्र हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में वृक्षों का अत्यधिक महत्व है। वृक्षों के बिना अधिकांश जीवों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वृक्षों से ढके पहाड़, फल और फूलों से लदे वृक्ष, बाग, बगीचे मनोहारी दृश्य उपस्थित करते हैं और मन को शांति प्रदान करते हैं। वृक्षों से अनेकों लाभ हैं जैसे वृक्ष अपनी भोजन प्रक्रिया के दौरान वातावरण से कार्बन डाइ ऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं जिससे अनेक जीवों का जीवन संभव हो पाता है। वृक्षों से हमें लकड़ी, घास, गोंद, रेजिन, रबर, फाइबर, सिल्क, टैनिन, लैटेक्स, हड्डी, बांस, केन, कत्था, सुपारी, तेल, रंग, फल, फूल, बीज तथा औषधियाँ प्राप्त होती हैं। वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करने का कार्य करते हैं और प्रदूषण को दूर करते हैं। ध्वनि प्रदूषण को दूर करते हैं। वायु अवरोधक की तरह काम करते हैं और इस तरह आँधी तूफान से होने वाली क्षति को कम करते हैं। वृक्ष की जड़ मिट्टी को मजबूती से पकड़ कर रखती है जिससे भूमि कटान रुकता है। वृक्षों की सुरक्षा के साथ पर्यावरण की रक्षा तो हो ही जाती है उसका आवश्यक संतुलन भी बना रहता है। आज के आधुनिक युग में शहरीकरण तथा औद्योगीकरण के फलस्वरूप वृक्षों का उपयोग बढ़ा है। आज वृक्षों का उपयोग कृषि जगत में ऊर्जा एवं ईंधन के श्रोत में भवन, पुल, रेल तथा साज सजावट इत्यादि के निर्माण में किया जाता है। जैसे- जैसे आधुनिक सभ्यता का विकास होता गया उसके साथ-साथ आदमी की इच्छायें, लोभ, लालच विस्तार पाते गये। अपने लोभ, लालच और स्वार्थों की पूर्ति एवं धन लिप्सा ने मनुष्य का ध्यान वनों की ओर आकर्षित किया और स्वार्थी मनुष्य ने अपने परम हितैशी वृक्षों का सफाया करना आरम्भ कर दिया। फलस्वरूप वन कटते चले गये और हरे-भरे घने पहाड़ नग्न हो गये। परिणाम स्वरूप अनेकों वनस्पतियां, औषधीय पौधे मुरझाकर जड़ मूल से समाप्त होने लगे। साथ ही अनेकों पशु-पक्षियों की जातियाँ, प्रजातियाँ रहने का ठौर ठिकाना न पाकर विलुप्त होते गये। ओम जी एस बी सोसल डबलपमेंट ट्रस्ट के चैयरमैन ए.के. सौलंकी ने कहा कि जब एक वृक्ष कटता है तो वह केवल वृक्ष ही नहीं कटता उससे मिलने वाली सभी चीजें तथा उस पर उगने वाली वनस्पतियाँ, जड़ी बूटियाँ, औषधीय तत्व, पेड़ों पर रहने वाले पशु पक्षी, कीड़े मकोड़े सभी का ह्रास होता है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई का मूल कारण बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण तथा औद्योगीकरण है। उपरोक्त समस्याओं की वजह से मनुष्य की आवश्यकताएं बढ़ी हैं। स्वार्थी मनुष्य के कृत्यों से आज पर्यावरण को खतरा पैदा हो गया है। यदि समय रहते इस ओर विशेष ध्यान न दिया गया तो आने वाले समय मे इसका दुश्प्रभाव झेलना पड़ेगा। आज हम भले ही इसका मूल नही समझ रहे होंगे परन्तु ग्लोवल वार्मिंग के चलते इसे देखना पड़ सकता है। वृक्ष पर्यावरण का अति महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। श्री सोलंकी ने तो यह भी कहा कि षरीर षान्त के बाद भी लकड़ी की आवष्यकता पड़ती है। कम से कम उनके योग्य तो पेड़ पौधे लगा लो। अपने सम्बोधन ने बाबा हठयोगी जी महाराज ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को असुरक्षित पर्यावरण धरती पर रहने वाले सभी जीवों के लिये प्राणलेवा साबित हो सकता है। अतः आवश्यक है कि पर्यावरण को संतुलित और सुरक्षित बनाया जाए। हरे- भरे जंगल इस बात का प्रमाण हैं कि वहाँ जलवायु मिट्टी तथा वहाँ के सभी जीव जन्तुओं में आपसी तालमेल है तथा वे स्वाभाविक जीवन- यापन कर रहे हैं। इसी ताल को बिगाड़ने का कार्य इंसान करता आया है। उसने न केवल जीव जन्तुओं के साथ अन्याय किया बल्कि जाने अनजाने स्वयं का भी अहित किया है। प्रसन्नता की बात यह है कि आज वन संरक्षण का कार्य वैज्ञानिकों, सरकार तथा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। अतः आशा की जाती है कि जैसा महन्त सतीष गिरी जी वृक्षारोपड़ कर रहे हैं और करते रहते हैं, और सभी देष जागरुक हो जाये तो हालात और बिगड़ने से पहले ही उन पर काबू पाया जा सकता हैं कार्यक्रम में ट्रस्ट के सचिव महन्त हरीष गिरी कोशाध्यक्ष महन्त गिरीष गिरी, नरेन्द्र प्रसाद कोठारी, स्वरुप पुरि, गजानन जोषी, बनेष ध्यानी, प्रेमलाल षर्मा, श्रीमति सविता षर्मा, राकुमार, मनोज भट्ट, अवनीष त्रिपाठी, सुरेष तिवारी, हरिप्रसाद षास्त्री, अमित पुरि, सन्तोश सेमवाल आदि मौजूद रहे।